
सूरतगढ़। शहर में व्यापारी-सफाईकर्मी विवाद समाप्त हो गया है। यह आंदोलन शहर के व्यापारिक संगठनों और उनके अगवा नेताओं ने मजबूती से लड़ा जिसके नतीजे में दोनों दोषी कर्मचारियों को शहर से रुखसत होना पड़ा । इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि इस आंदोलन को सफल बनाने में शहर के सभी पार्टियों के नेता जिनमें कांग्रेस के नेता भी शामिल है ने अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वाह किया। पक्ष विपक्ष को भूलकर कांग्रेस के कुछ नेताओं ने सच के साथ खड़े होना पसंद किया।
लेकिन पूरा शहर जब सच के साथ लामबंद हो रहा था ऐसे समय में शहर के कुछ नेताओं का नकारात्मक रवैया भी सवालों के घेरे में रहा। ऐसे लोगों में नगरपालिका के चेयरमैन मास्टर ओमप्रकाश कालवा सबसे ऊपर है। घटना के बाद जब शहर का माहौल बिगड़ रहा था तब उन्हें नगरपिता होने के नाते आगे बढ़कर आंदोलन को समाप्त करने की पहल दिखाने की जरूरत थी। लेकिन उपाध्यक्ष -पार्षद विवाद की तरह ही व्यापारी-सफाईकर्मी विवाद में भी न जाने किस वजह से उन्होंने इसकी जरा सी भी कोशिश नहीं की। उल्टे वे तो इस मौके पर भी संकीर्णता का परिचय देते हुए व्यापारियों को नीचा दिखाते नज़र आये। वह भी तब जब आंदोलन की अगुवाई कांग्रेस पार्टी के ही कुछ नेता कर रहे थे।
वैसे अगर इस पूरे मामले पर गंभीरता से गौर किया जाए तो पूरे प्रकरण के सूत्रधार कहीं ना कहीं खुद मास्टर ओमप्रकाश कालवा प्रतीत होते हैं। पहले दिन जब अतिक्रमण हटाने को लेकर विवाद हुआ था तब कांग्रेस के ही एक मनोनीत पार्षद और व्यापारी नेता से उन्होंने अगले दिन 11 सदस्य प्रतिनिधीमंडल से वार्ता करने और अभियान नहीं चलाने की बात कही। लेकिन अगले दिन पालिका का दस्ता व्यापारियों के अतिक्रमण को तोडने के लिए पहुंच गया। क्योंकि उस दिन ईओ विजय प्रताप शहर में नहीं थी तो साफ जाहिर है कि अतिक्रमण हटाने के निर्देश चेयरमैन कालवा के अलावा और किसने दिए होंगे। चेयरमैन द्वारा दी गई खुली छूट का नतीजा था कि बेलगाम सफाईकर्मी व्यापारी पिता पुत्र के साथ खुली गुंडई पर उतर आए। अतिक्रमण हटाने के दौरान लोगों का विरोध स्वाभाविक है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि विरोध कर रहे लोगों का दमन इस तरह से किया जाए।
घटना के दिन चेयरमैन कालवा सुबह ही शहर से बाहर चले गये थे परन्तु नगरपिता होने के नाते क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं थी कि वे शहर में लगी हुई आग को बुझाने का प्रयास करते ? वे अपने किसी प्रतिनिधि या पार्टी के प्रमुख नेताओं को मामले को सुलझाने के लिए मौके पर भेजते ? लेकिन उन्होंने मूकदर्शक बनकर आग को सुलगने दिया। वे यह भी भूल गए कि इस घटना से केवल उनकी छवि को ही नुकसान नहीं पहुंच रहा बल्कि कांग्रेस पार्टी जिनके वे नुमाइंदे हैं और मील परिवार जिनकी बदौलत उन्हें यह कुर्सी मिली है उनको कितना नुकसान पहुंच रहा है ? चेयरमैन कालवा इतने बेवकूफ तो नहीं लगते कि वह इतनी बात नहीं समझते हो ?
बहरहाल दूसरे दिन भी जब मामला तूल पकड़ता जा रहा था चेयरमैन कालवा ने एक तरफ तो खुद मामले को सुलझाने की कोशिश नहीं की तो दूसरी तरह कांग्रेस नेता हनुमान मील के मामले को सुल्झाने के प्रयासों पर भी पानी फेर दिया। उपखंड अधिकारी कार्यालय में हुई वार्ता में व्यापारी नेताओं से अपनी तमाम शिकायतों के बावजूद हनुमान मील ने खुद आगे बढ़कर SI सुशील शर्मा और सफाईकर्मी मनिंदर को एपीओ करने का आश्वासन दे दिया था। व्यापारी भी हनुमान मील के आश्वासन पर मान गए थे और उन्होंने धरना स्थल पर जाकर हनुमान मील के प्रस्ताव को व्यापारियों के समक्ष रखने की बात की।
लेकिन चेयरमैन कालवा के दिमाग में तो शायद कुछ और चल रहा था उन्होंने व्यापारी नेताओं को यह कह कर कि ‘जब उनके पास निर्णय लेने की पावर ही नहीं है तो यहां आए किसलिए हैं” बनी बनाई बात का गुड़ गोबर कर दिया।जिसके बाद व्यापारी नेता चेयरमैन कालवा से उलझ गये।अगर चेयरमैन कालवा संजीदगी का परिचय देते तो व्यापारी-सफाईकर्मी विवाद का निपटारा उसी समय हो जाता साथ ही कांग्रेस नेता हनुमान मील के प्रयासों और कांग्रेस नेताओं को सराहना मिलती। लेकिन जाने क्यों चेयरमैन कालवा ने इस सुनहरे मौके को बर्बाद कर दिया। इतना ही नहीं वार्ता के दौरान चेयरमैन कालवा के अहंकार को देखकर आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं कांग्रेस के ही दो नेताओ ने नम आँखों से चेयरमैन के आगे हाथ जोड़ दिए। पर क्या मजाल चेयरमैन कालवा का दिल पसीज जाये।
मजे की बात यह है कि ठीक ऐसा ही समझौता देर शाम को हुई वार्ता के बाद चेयरमैन कालवा और कांग्रेसी नेताओं ने स्वीकार कर लिया। लेकिन अब मैसेज ये गया कि व्यापारियों के दबाव में नगरपालिका और कांग्रेस नेताओं को झुकना पड़ा। कहीं ना कहीं सोचने वाली बात यह भी है कि क्यों चेयरमैन कालवा ने हनुमान मील के प्रयासों को सफल होने नहीं दिया ? अगर हनुमान मील धरना स्थल पर पहुंचकर व्यापारियों को दोनों कर्मचारियों को एपीओ करवाने का आश्वासन देते तो हनुमान मील के साथ ही व्यापारियों में कांग्रेस का जनाधार भी कायम रहता। लेकिन समझौते में देरी होने के चलते पूर्व विधायक गंगाजल मील और मास्टर ओमप्रकाश कालवा समझौते को लागू करवाने के बावजूद इस हालत में नहीं थे कि मौके पर पहुंचकर व्यापारियों का सामना कर पाते ?
कुल मिलाकर पूरे प्रकरण में हुई कांग्रेस की किरकिरी को मिटाने का एक बड़ा मौका चेयरमैन कालवा की चालबाजियों के चलते हाथ से चला गया। उसका खामियाजा कांग्रेस के बड़े नेताओं को भुगतना पड़ेगा। वैसे खुद चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा इस पूरे प्रकरण में शहर की जनता की अदालत में नंगे हो चुके हैं। नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले मास्टरजी किस तरह के अनैतिक हथकंडे अपना रहै है यह शहर की जनता पहले उपाध्यक्ष पार्षद विवाद तो अब व्यापारी सफाईकर्मी विवाद में देख चुकी है। लेकिन चेयरमैन कालवा यह भूल जाते हैं कि इन हथकंडो से आप विरोधियों को तो मिटा सकते हैं लेकिन दोस्त नहीं पैदा कर सकते।
चेयरमैन कालवा के 3 साल के कार्यकाल के बाद अब शहर की जनता का विकास का सपना टूट चुका है। यहीं वजह है कि धरने पर बैठे उन्हीं के नजदीक समझे जाने वाले लोग उनके लिए ओमप्रकाश कालवा की जगह ‘कालवे’ जैसे हल्के शब्दों का प्रयोग कर रहे थे। बहरहाल कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष की बगावत से शुरू होकर उपाध्यक्ष-पार्षद विवाद और अब व्यापारी-सफाईकर्मी विवाद ने यह जरूर साबित किया है कि चेयरमैन कालवा अब नीम के उस पेड़ की तरह बनते जा रहे हैं जो अपनी छाया में किसी भी पौधे को पनपने नहीं देना चाहता। परन्तु व्यापारी-सफाईकर्मी विवाद में चेयरमैन की नंगई को शहर की जनता बहुत नजदीकी से देख चुकी है। ऐसे में महाराणा प्रताप चौक पर समझौते के बाद देर शाम जब व्यापारी और आमजन जीत का जश्न मना रहे थे तब लग रहा था कि मानो जनता यहीं गीत गा रही हो ..
जा जा जा रे….
जा जा जा रे, तुझे हम जान गए।
कितना पानी में है पहचान गए।।
जा जा जा रे तुझे हम जान गए।
–राजेन्द्र पटावरी, उपाध्यक्ष प्रेस क्लब सूरतगढ़