एक और घोटाले में फँसे चेयरमैन कालवा, चहेती फर्म को कागजी सर्वे पर लाखों का भुगतान

CURRUPTION POLIITICS

कांग्रेस नेता परसराम भाटिया और धर्मदास सिंधी ने की शिकायत

सूरतगढ़। सीवरेज घोटाले में फँसे चेयरमैन ओम कालवा को भले ही 26 मई तक की राहत उच्च न्यायालय से उन्हें मिल गई हो, लेकिन आने वाले दिनों में एक और घोटाला चेयरमैन कालवा के गले की फांस बन सकता है। बात हो रही है नगरीय विकास कर के सर्वे के नाम पर हुए घोटाले की। इस मामले मे फर्जी सर्वे के आधार पर चेयरमैन कालवा और पालिका अधिकारियों पर एक फर्म को करीब पौने 8 लाख रु का भुगतान करने के आरोप लग रहे हैं ।

                बताया जा रहा है कि फर्म द्वारा जब पिछले दिनों 12 लाख 75 हज़ार रु का बिल भुगतान के लिए ईओ शैलेंद्र गोदारा के समक्ष पेश किया गया तो उनके कान खड़े हो गए। इस पर जब ईओ ने मामले की जानकारी ली तो घोटाले की परतें खुल गई। अब कांग्रेस के पीसीसी सदस्य और पार्षद परसराम भाटिया, पार्षद मोहम्मद फारूक, धर्मदास सिंधी ने इस मामले में स्वायत्त शासन मंत्री को शिकायत कर जांच की मांग की है।

क्या है पूरा मामला 

शिकायत के मुताबिक नगरपालिका ने गत वर्ष जुलाई माह में पालिका क्षेत्र में आवासीय, व्यवसायिक व वाणिज्यिक सम्पतियों का सर्वे करवाने का निर्णय लिया था। इसके लिए पालिका ने संपत्तियों का विवरण पोर्टल पर अपलोड करने और संबंधित संपत्ति धारकों को नोटिस जारी कर नगरीय विकास कर वसूलने के लिए एक्सप्रेशन आफ इंटरेस्ट ( EOI/रुचि की अभिव्यक्ति) यानि एक तरह की निविदा आमंत्रित की। दस्तावेजों के मुताबिक पालिका ने 25 जुलाई को EOI का विज्ञापन जारी कर 1अगस्त तक इच्छुक फर्मों से EOI प्रस्तुत करने को कहा ।

              इस पर धौलपुर की दो फर्मों मैसर्स उड़ान इंडिया फाउंडेशन समिति व मैसर्स भूमि बिल्डकॉन और जयपुर की एक फर्म के.आर.जंक्शन सर्वे में रूचि दिखाते हुए प्रस्ताव प्रस्तुत किए। बाद में पालिका अधिकारियों ने नेगोशिएशन कर मैसर्स उड़ान इंडिया फाउंडेशन समिति को सर्वे के लिए आर्डर जारी किए। मैसर्स उड़ान इंडिया को आवासीय संपत्ति के सर्वे के लिए ₹170 और व्यवसायिक संपत्ति के लिए 190 रुपए प्रति संपत्ति की दर तय किया गया। यही नहीं अधिकारीयों ने संबंधित फर्म को लाभ देने के लिए नोटिस जारी होने के बाद होने वाली नगरीय कर की वसूली में 12.5 प्रतिशत राशि फर्म को देने का शर्त भी प्रस्ताव में शामिल कर ली।

                      शिकायतकर्ताओं के अनुसार उड़ान इंडिया की ओर से पहले दो हज़ार और फिर 2500 संपत्तियों के सर्वे कर विवरण पोर्टल पर अपलोड करने का दावा करते हुए 3.40 लाख और 4.25 लाख यानि 7.65 लाख रूपये का भुगतान उठा लिया।

                      अप्रैल माह में एक बार फिर फर्म ने  21 जनवरी से 27 मार्च के बीच 7500 आवासीय संपत्तियों का सर्वे करने का 12 लाख 75 हजार रूपये का बिल नए ईओ शैलेन्द्र गोदारा के समक्ष पेश किया। जिसके बाद सर्वे ईओ गोदारा ने मामले की जानकारी ली तो इस भ्रष्टाचार का खुलासा हो गया। जिसके बाद ईओ ने फर्म के भुगतान पर रोक लगा दी है।

बिना विज्ञापन के लिया प्रस्ताव,कागजी सर्वें पर चहेती फर्म को लाखों का भुगतान,

मामला उजागर होने के बाद चैयरमेन कालवा एक बार फिर कांग्रेस नेताओं के निशाने पर है। कांग्रेस नेता परसराम भाटिया का कहना है कि यह पूरा प्रकरण मास्टर ओमप्रकाश कालवा के भ्रष्टाचार का नायाब नमूना है। उन्होंने कहा कि पालिका से प्राप्त पत्रावली में संबंधित कार्य की निविदा का ना तो विज्ञापन है और ना ही पत्रावली में इस बात का हवाला दिया गया है कि संबंधित कार्य के लिए किस अखबार में और कब EOI का प्रस्ताव जारी किया गया ?

शिकायतकर्ताओं का कहना है कि EOI मैं शामिल तीनों फर्मों में 2 धौलपुर और एक फर्म जयपुर की है। जिसका सीधा सा अर्थ है कि  EOI का प्रस्ताव गुपचुप तरीके से जारी किया गया ताकि चेयरमैन कालवा अपनी चहेती फर्म को ही काम दे सके। शिकायतकर्ताओं ने EOI में भाग लेने वाली 3 में से 2 फर्मों के धौलपुर की होने और इन्ही फर्मों में से एक फर्म उड़ान इंडिया को सर्वे का काम देने के चलते पुर्व ईओ विजय प्रताप सिंह की भूमिका को संदिग्ध बताया है। यहां गोरतलब है कि ईओ विजय प्रताप धौलपुर से है।

                        इसके अलावा शिकायतकर्ताओं का कहना है कि फर्म द्वारा सर्वे कर जो डाटा पोर्टल पर अपलोड किया गया है उसमे संपत्ति का कोई विवरण ही नहीं है। अपलोड किए गए डाटा में महज नाम और मोबाइल नंबर दिए गई। फर्म ने किसी भी तरह का सर्वे निर्धारण प्रपत्र भी पालिका को उपलब्ध नहीं करवाया। इसके साथ ही तकनीकी रूप से संपत्तियों के जियो टैगिंग भी की जानी चाहिए थी। लेकिन किसी संपत्ति का कितना हिस्सा नगरीय कर की वसूली की श्रेणी में आता है या फिर किन-किन संपत्तियों से कितना नगरीय कर वसूला जा सकता है, इस बात कोई विवरण भी फर्म ने नहीं दिया है। जिसका सीधा सा अर्थ है कि फर्म ने कंप्यूटर पर फर्जी डाटा तैयार किया और पालिका अधिकारियों सांठगांठ कर बिना सत्यापन किए लाखों रु का भुगतान उठा लिया। 

           शिकायतकर्ताओं ने नगरीय कर की वसूली में कंपनी को साढे 12% हिस्सा दिए जाने की शर्त पर भी सवाल उठाया है। सबसे बड़ी बात यह भी है कि प्रस्ताव की शर्तो में यह भी साफ नहीं है कि फर्म को नगरीय कर की वसूली के लिए कितने साल का अनुबंध किया गया है ? प्रस्ताव में समयावधि नहीं देने से एक तरह अनंतकाल के लिए कर वसूली का अधिकार फर्म को मिल गया है। जो की वास्तव में हैरान करने वाला है! शिकायतकर्ताओं ने राजकोष को हानि पहुंचाने का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की है।

नगरीय विकास कर की वसूली के ये है नियम

आम तौर पर नगरपालिका क्षेत्र में आवासीय श्रेणी में 300 वर्ग गज और व्यावसायिक श्रेणी में 100 वर्ग गज से अधिक क्षेत्रफल से बड़े भूखंड ही नगरीय विकास कर के दायरे में आते है। पालिका द्वारा वर्तमान में करवाए गए सर्वे में ठेकेदार फर्म द्वारा 12 हज़ार से अधिक संपत्तियों के विवरण में इस बात का जिक्र ही नहीं है कि कौनसी संपत्ति किस वार्ड में स्थित है और उसका कितना हिस्से से नगरीय कर की वसूली की जा सकती है ? इसका सीधा सा अर्थ है कि लाखों रुपए खर्च कर जो डाटा ठेकेदार फर्म द्वारा प्रस्तुत किया गया है,उससे 1 रुपए की वसूली भी पालिका को नगरीय विकास कर के रूप में होने वाली नहीं है।

मास्टर जी की छवि पर लगा एक और दाग

नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में मास्टर ओमप्रकाश कालवा साढे 3 साल के कार्यकाल में विवादों में घिरे रहे है । अब इस घोटाले के उजागर होने के बाद चेयरमैन ओम कालवा की छवि पर एक और बड़ा दाग लग गया है। कांग्रेस से छिटककर भाजपा का दामन थामने वाले चेयरमैन कालवा की मुसीबत यह है कि भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते कालवा की एंट्री से भाजपा के अधिकांश नेता खुश नहीं है। ऐसे में भ्रष्टाचार के आरोपों की लड़ाई उन्हें अकेले ही लड़नी होगी। इस मामले में भी उन्हें आगे आकर अपना पक्ष रखना चाहिए।

-राजेन्द्र पटावरी, उपाध्यक्ष-प्रेस क्लब, सूरतगढ़।

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