सूरतगढ़। शहर का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इन दिनों कुप्रबंधन का शिकार होता जा रहा है। प्रभारी डॉ. नीरज सुखीजा की कमजोरी और सेवारत्त डॉक्टर्स की मनमानी के चलते अस्पताल में अव्यवस्थाओं का आलम है। अस्पताल में कहने को तो करीब डेढ़ दर्जन डॉक्टर कार्यरत है। लेकिन आमतौर पर अस्पताल में आधे ही डॉक्टर अपनी ड्यूटी करते हैं। ऐसे में इलाज की उम्मीद में आने वाले ज्यादातर लोगों को धक्के खाकर और निराश होकर लौटना पड़ता है।

जिले के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल में डॉक्टर्स द्वारा किस तरह से स्वास्थ्य सेवाओं का मजाक बनाया जा रहा है इसकी एक बानगी सोमवार को देखने को मिली। अस्पताल में लगे सूचना पट्ट के मुताबिक सोमवार यानी 30 जून को अस्पताल में 17 में से केवल 7 ही डाक्टर मौजूद थे। अस्पताल के 4 डॉक्टर ( प्रभारी डॉक्टर नीरज सुखीजा, डॉक्टर संजौली सोनी, डॉ भारत भूषण जांगिड़ और डॉक्टर मांगीलाल लेघा) की साप्ताहिक अवकाश की एवज में ड्यूटी ऑफ थी। वहीं डॉ हनुमान प्रसाद का नाइट ड्यूटी के चलते ऑफ था। इसके अलावा 4 और डॉक्टर ( डॉक्टर शैलेंद्र सिंह, डॉ प्रशांत रसेवट, डॉक्टर सपना बावेजा और डॉक्टर अमृतलाल) अवकाश पर थे। कहने का तात्पर्य यह है कि रविवार की छुट्टी के बाद सोमवार को सबसे ज्यादा संख्या में मरीज अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचते हैं। लेकिन सोमवार क़ो ज्यादातर डॉक्टरों के ड्यूटी पर नहीं होने के चलते बड़ी संख्या में मरीजों को निराश होकर लौटना पड़ा। इनमें से ऐसे कई गंभीर रोगों के मरीज भी रहे होंगे जिन्हे इलाज व दवा नहीं मिलने से खासी परेशानी का सामना करना पड़ा होगा। लेकिन अस्पताल प्रबंधन को इससे क्या ! वैसे भी जब प्रभारी डॉक्टर खुद छुट्टी पर हो डॉक्टर की उपस्थिति कौन सुनिश्चित करता ?
ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है दरअसल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के हालात पिछले कुछ सालों से ऐसे ही हैं। अस्पताल में कुछ डॉक्टर और कर्मचारियों का एक सिंडिकेट बन चुका है जो अपनी मर्जी से अपने ड्यूटी ऑवर तय करता है। इस अस्पताल में डॉक्टर रमेश सोखल, डॉ शैलेंद्र सिंह, डॉ लोकेश अनुपानी, डॉ मांगीलाल लेघा जैसे कुछ ही डॉक्टर है जो काफ़ी हद तक सेवा से जुड़े इस प्रोफेशन से न्याय करते हैं। अस्पताल के कुछ डॉक्टर्स का ध्यान तो अस्पताल में मरीजों को देखने पर कम और अपनी निजी प्रैक्टिस पर ज्यादा है। ऐसे डॉक्टर अस्पताल का समय शुरू होने के करीब 1 घंटे बाद आते हैं और ड्यूटी के बीच में भी स्कूल की तरह बंक मार कर अपने निजी अस्पताल में मरीजों को देख आते है। ऐसा नहीं है कि चिकित्सा प्रभारी को इस बात का ज्ञान नहीं है लेकिन वे खुद भी कुछ चापलूस डॉक्टर्स से घिरे हुए है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर अस्पताल की व्यवस्था में सुधार कौन करेगा ?
नियमों को ताक में रखकर साप्ताहिक अवकाश का चल रहा खेल

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर द्वारा साप्ताहिक अवकाश का खेल रचकर आम जनता और मरीजों के साथ धोखा किया जा रहा है। दरअसल डॉक्टर्स क़ो सप्ताह में एक अवकाश अलाऊ है। परन्तु यह साप्ताहिक अवकाश आमतौर पर वीकेंड यानी शनिवार रविवार क़ो लेने का नियम है। लेकिन सूरतगढ़ में अधिकांश डॉक्टर रविवार को अवकाश लेने की बजाय ड्यूटी करते है। क्योंकि रविवार के दिन मरीज को देखने का समय 2 घंटे ही निर्धारित है। इस तरह ये डॉक्टर रविवार क़ो छुट्टी नहीं रख कर सोमवार या मंगलवार को साप्ताहिक अवकाश लेते हैं। जबकि इन दिनों में अस्पताल में ओपीडी सबसे अधिक होती है। इस तरह से ज्यादा काम से बचने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में के डॉक्टर्स द्वारा यह खेल खेला जा रहा है।
मजेदार बात यह है कि विभाग के सीएमएचओ अजय सिंगला का भी स्पष्ट आदेश है कि डॉक्टर को साप्ताहिक अवकाश सोमवार और गुरुवार को नहीं दिया जाए। इसके बावजूद सूरतगढ़ चिकित्सालय में अगर डॉक्टर् सोमवार को साप्ताहिक अवकाश ले रहे है तो क्या यह संभव है कि प्रभारी डॉक्टर नीरज सुखीजा क़ो इस आदेश की जानकारी नहीं है ? साफ है कि उनकी मर्जी से ही यह सब चल रहा है।
सप्ताह में केवल 4 दिन ही ड्यूटी कर रहे है डॉक्टर
राजकीय चिकित्सालय में केवल सप्ताहिक छुट्टी ही नहीं बल्कि नाइट ड्यूटी के नाम पर भी मरीज के साथ धोखा किया जा रहा है। क्योंकि अस्पताल में 24×7 खुला रहता है और रात्रि में भी कोई मरीज आ सकता है। इसलिये अस्पताल में रात्रि में भी एक चिकित्सक की ड्यूटी लगाई जाती है। सामान्य नियम है कि रात्रि में विशेषज्ञ चिकित्सकों की ड्यूटी नहीं लगाई जाती ताकि स्पेशलिस्ट डॉक्टर दिन में मरीजों को अपनी सेवा दे सके। लेकिन इस नियम क़ो धता बताकर अस्पताल के कई स्पेशलिस्ट डॉक्टर प्रबंधन से मिलीभगत कर नाइट ड्यूटी करते है। जिससे कि अगले दिन अवकाश लेकर घर में दुकान खोलकर मरीजों को लूटा जा सके। बात यहीं खत्म नहीं होती रात्रि ड्यूटी में जहाँ डॉक्टर को अस्पताल में रहना होता है, लेकिन तलख़ सच्चाई यह है कि राजकीय चिकित्सालय में डॉक्टर्स की नाइट ड्यूटी केवल कागजो में दर्ज़ होती है। दरअसल ये डॉक्टर अस्पताल में मौजूद नहीं रहते बल्कि इमरजेंसी में ऑन कॉल ही नाइट ड्यूटी में आते है।
कुल मिलाकर राजकीय चिकित्सालय में अधिकांश डॉक्टर एक और रविवार को जहाँ साप्ताहिक अवकाश ना लेकर एकाध घंटे मुंह दिखाकर टाइम पास कर लेते है तो वहीं साप्ताहिक अवकाश और नाइट ड्यूटी के बहाने सप्ताह के 2 दिन घर में रहकर अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस को चमका रहे हैं। यह पूरा खेल बिना उच्च अधिकारियों की मिलीभगत से चल रहा है ऐसा सम्भव नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर राजकीय चिकित्सालय में चल रही डॉक्टर की मनमानी पर रोक लगाकर व्यवस्था में सुधार कौन करेगा ?